Thursday, January 11, 2007

tumhe kisi intzaar kyon hai..? (my first poetry)


मेरे दोस्त, खामोश आंखें भी बहुत कुछ कह जाती हैं,तो फिर लबों के कहने की जरुरत क्यों है?मन की रागिनी ही सितार बजा जाती है,तो बाहर सितार थिरकने का इंतजार क्यों है?होठों का मौन ही कह चुका है सबकुछ,तो उन्हें शब्द देने को तू बेकरार क्यों है?मेरे दोस्त,जब तेरा मेरा प्यार ही काफी है,तो तुम्हें किसी और के कहने का इंतज़ार क्यों है?जब तेरे दिल ने ही कर रखी है रोशनी,तो तुम्हें चांद निकलने का इंतजार क्यों है?जब पास रह के भी फासले मिट ना सके दिल के,तब तुम्हें उसके दूर जाकर पुकारने की आस क्यों है?मेरे दोस्त, जब तेरे दिल का आशियां ही काफ़ी है मेरे लिये,तब मुझे घर बसाने की ज़रुरत ही क्य़ों है?मेरे साथ हमदम दोस्त तुम हो,तो मुझे किसी और की दरकार ही क्यों है?