Saturday, March 24, 2007

ऐ मेरे दोस्त... कैसे करूं तेरा शुक्रिया...


बिन मांगी दुआ से तुम मिले मुझे मेरे दोस्त...
कैसे करूं मैं तेरी दोस्ती का हक अदा...
ऐ मेरे दोस्त!.. मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया...

कड़कती धूप में जल रही मेरी ज़िंदगी...
तुम लेके आये प्यार का घना साया..
मुझे जो रखा पलकों की छांव तले...
ऐ मेरे दोस्त!... मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया...

अंधेरी, सीली फ़िज़ां में घुटता दम मेरा...
सहमी सांसें, खोई थी रोशनी कहीं...
तुम बन के आये खुशी का उजियारा..
खुद को जला के किया जो मुझे रोशन..
ऐ मेरे दोस्त!.. मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया..

डरी, सहमी मैं अकेली.. बिल्कुल तन्हा....
साथी भी सारे बन गये अजनबी...
ऐसे में तुमने साया बन साथ निभाया...
भूल के अपनी तन्हाई जो बने मेरे साथी...
ऐ मेरे दोस्त!.. मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया...


मेरे सूने मन पर जब अंधेरा गहराया...
खो दी थी मैंने मंज़िल की राह भी...
ऐसे में तुमने हाथ पकड़ चलना सिखाया..
खुद की राह छोड़ जो चले मेरे संग....
ऐ मेरे दोस्त!... मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया...


मेरा खाली दामन तुम्हें कुछ भी ना दे पाया..
पर मेरी सारी मुश्किलें तुमने थाम लीं...
और तुम हर पल बने रहे मेरा सरमाया...
अपने आंसू भूल जो मेरी खुशी में हंस दिये....
ऐ मेरे दोस्त!... मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया...

8 comments:

ghughutibasuti said...

अच्छी कविता है। किन्तु दोस्तों को शुक्तिया नहीं कहा जाता।
घुघूती बासूती

Jitendra Chaudhary said...

बहुत सुन्दर कविता। मै भी यही कहना चाहूंगा कि दोस्ती मे नो थैंक्स, नो सॉरी।

एक कविता(ज़ाहिर है मैने नही लिखी) मूझे भी याद आयी है, मुलाहिजा फरमाइए :

दोस्ती नाम नहीं सिर्फ़ दोस्तों के साथ रहने का..
बल्कि दोस्त ही जिन्दगी बन जाते हैं, दोस्ती में..

जरुरत नहीं पडती, दोस्त की तस्वीर की.
देखो जो आईना तो दोस्त नज़र आते हैं, दोस्ती में..

यह तो बहाना है कि मिल नहीं पाये दोस्तों से आज..
दिल पे हाथ रखते ही एहसास उनके हो जाते हैं, दोस्ती में..

नाम की तो जरूरत हई नहीं पडती इस रिश्ते मे कभी..
पूछे नाम अपना ओर, दोस्तॊं का बताते हैं, दोस्ती में..

कौन कहता है कि दोस्त हो सकते हैं जुदा कभी..
दूर रह्कर भी दोस्त, बिल्कुल करीब नज़र आते हैं, दोस्ती में..

सिर्फ़ भ्रम हे कि दोस्त होते है अलग-अलग..
दर्द हो इनको और, आंसू उनके आते हैं , दोस्ती में..

माना इश्क है खुदा, प्यार करने वालों के लिये “अभी”
पर हम तो अपना सिर झुकाते हैं, दोस्ती में..

और एक ही दवा है गम की दुनिया में क्योंकि..
भूल के सारे गम, दोस्तों के साथ मुस्कुराते हैं, दोस्ती में

Udan Tashtari said...

वाह वाह!! मान्या के साथ साथ जीतू की प्रस्तुति भी बेहतरीन रही.

--एक ही पोस्ट में दो दो कविता...समझ नहीं आ रहा--ऐ मेरे दोस्त!... मैं कैसे करूं तेरा शुक्रिया... :)

Anonymous said...
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Monika (Manya) said...

बासुती जी ध्न्यवाद जो आपको मेरी कविता पसंद आई.. रही बात दोस्ती में शुक्रिया कहने की.. तो ये शुक्रिया औपचारिकता नहीं बल्कि मन के उद्गार हैं दोस्त के प्रति.. जो उसे बताते हैं कि जीवन में क्या स्थान है उसका... its all gratitude and no formalities..

जीतू जी.. काफ़ी अच्छी कविता है.. और बाकी मैने उपर कह दिया है.. धन्य्वाद

समीर जी.. धन्य्वाद .. आपके सुंदर शब्दों का...

रंजू भाटिया said...

bahut sundar manya ...and jeetu ji ...bahut hi achha laga in do rachnaao ko padhana ...

Divine India said...

दोस्ती का हक तब अदा होता है जब दोस्त खुद की तरह हमें भी चाहता है। सुंदर लिखा है…।
very +ve...very simple...

Unknown said...

ati sunder ak ke sath kai kavitaye padne ko mil gai. Bahut hi sunder kavita hai.