Sunday, October 26, 2008

बारिश.... अजीब सी....




कई दिनों बाद आज फ़िर बारिश हो रही है..... काले घनघोर बादल छाये हुये हैं.... और अनवरत हो रही है बारिश.... बहुत तेज नहीं... पर बहुत मद्धम भी नहीं.....


यूं तो मुझे बारिश बेहद पसंद है.... बारिश होते ही.... मेरा मन करता भींग जाउं... आसमान से गिरती बूंदों को देख्ना.. उन्हें हाथ में लेना.. बेहद पसंद है मुझे.... हल्की हल्की बारिश में चलना.. बहुत भला लगता है मुझे........


पर जाने क्यूं आज ये बारिश......... मुझे अच्छी नहीं लग रही... मानो... कुछ अजीब सी है ये बारिश... किसी अवसाद में घिरे हैं ये बादल... और यूं इसका थोड़ा धीरे बरसना.... छुपकर चुपअचाप रोने सा मालूम होता है मुझे....... आज बारिश में भीगने को भी जी नहीं चाहता.... बल्कि इस बारिश से मेरा मन भीगा जा रहा है... पलकें जाने - अनजाने चुपके से गीली हो जाती हैं.... भागते हुये बादल यूं लगते हैं जैसे.. कोई सब कुछ छोड़ कर कहीं भागा जा रहा हो.. सारी दुनिया से...




बारिश सुबह से ही हो रही है... सब कुछ भीग रहा है... हल्की ठंड भी हो रही है... पर जाने क्यूं मेरा तन-मन इस ठंडक को अपने भीतर नहीं महसूस कर पा रहा है.... मन तरस रहा है अब भी शीतलता को............ शाम हो आयी है.... पर स्याह बादलों की वजह से.. सिंदूरी लालिमा कहीं नज़र नहीं आती.... ये तो स्याह शाम है... एक स्याह शाम.... और यूं भी आज तो वक्त के पहले ही अंधेरा हो गया है... और बढता ही जाता है... भींगा अंधेरा.. घना स्याह अंधेरा....... शायद भींगे कंबल जैसा......... जिसे ओढने से क्या भला.. ठंड दूर होगी ?........ और ना चुभेगा वो ??...........




अंधेरे में ये बादल कुछ अजीब से लग रहे हैं मुझे.... इनकी सफ़ेदी अजीब सी है.. कुछ भुतहा सी.....शायद इनको देखते देखते डर भी लगता है कहीं .. भीतर ही भीतर.. और मैं झट से... नज़रें नीची कर लेती हूं.....


आज ये घने-गहरे बादल मुझे अच्छे नहीं लगते.. वरन डराते भी हैं मुझे.... कहीं बारिश इतनी तेज तो न होगी... की सब बह जायेगा...... डूब जायेगा..... ?




नहीं नहीं ऐसा नहीं होगा..... ये धीमी.. अजब सी बारिश.... इसे थमना ही होगा.. नहीं तो लगता है मेरा दम घुट जायेगा........ जैसे सांस नहीं ले पाउंगी.... मुझे खुला आकाश चाहिये..... नीला -चमकीला.... उष्ण धूप की चाहिये मुझे..... खुली हवा.. चमकीले तारे ..... चांदनी रात...... ये चाहता है मेरा मन.... जानती हूं बादल छंट जायेंगे..... इन्हें मुझे मेरा आकाश लौटाना ही होगा....... आज मुझे इनकी चाह नहीं....... मुझे अब धुली-खुली... सुंदर.... वसुंधरा की चाह है... वो भी नीले आसमां तले...........

5 comments:

संगीता पुरी said...

अच्‍छा आलेख, आपको सपरिवार दीपावली व नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये।

शायदा said...

सचमुच थमना ही होगा बारिश को...।
सुंदर भाव।

ghughutibasuti said...

अच्छी रचना ! बारिश अवश्य थमेगी और आपका आकाश भी आपको मिलेगा ।
आपको व आपके परिवार को दीपावली पर हार्दिक शुभ कामनाएं ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

चिंता न करें, थम जायेगी समय से...

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/

betuki@bloger.com said...

अच्छा आलेख। आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।